नयी इच्छाओँ ने जन्म लेना
शुरू कर दिया है...
ये कैसे हो गया?
अभी तो कई पुरानी इच्छाएँ,
अपने साकार होने की
प्रतीक्षा कर रही हैँ...
अब इतनी सारी इच्छाएँ
कैसे पूरी होँगी?
दिमाग ने सोचने से
मना कर दिया है,
कह रहा है- "मन से जन्मी इच्छाएँ,
मैँ नहीँ सुलझाऊँगा.."
और मन कह रहा है-
"फिक्र मत करना और सबकुछ
परिस्थितियोँ पर छोड़ देना,
क्योँकि ये परिस्थितियाँ
या तो इच्छाएँ पूरी कर देँगी
या फिर स्वत: ही उन्हेँ दबा देँगी.."
अब सोच रही हूँ कि
क्योँ ना अपनी नयी-पुरानी इच्छाओँ के साथ,
करूँ परिस्थितियोँ का इंतजार...
आखिर,
परिस्थितियोँ पर ही तो निर्भर है,
इन इच्छाओँ की परिणीती...
बहुत अच्छी कविता है आपकी....बधाई
ReplyDeleteनीरज
सच कहा है परिस्थितियां बहुत सी इच्छाओं को खत्म कर देती हैं....अच्छी रचना
ReplyDeletesuhaan allah....
ReplyDeleteक्योँ ना अपनी नयी-पुरानी इच्छाओँ के साथ,
ReplyDeleteकरूँ परिस्थितियोँ का इंतजार...
आखिर,
परिस्थितियोँ पर ही तो निर्भर है,
इन इच्छाओँ की परिणीती
अंत-तो-गत्वा...यही निष्कर्ष निकलता हें मन की उन्ल्झानो का.
सुंदर एहसासों में पिरोई रचना.
likhne mein ek nayapan hai..ek tajgi hai..keep it up mitali :)
ReplyDeleteFinest lines ever.
ReplyDeletewww.alienshot.blogspot.com
aap ki kavitaye bahut hi pyari hai apki hi tarh:-)...fir padne ana padega...
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