वो पल,
जब पहली बार नज़रोँ की चिलमन टकराई थी,
दूर कहीँ मन्दिर मेँ किसी ने घण्टी बजाई थी।
वो पल,
जब दो दिल धक्-धक् धड़क रहे थे,
आसमान मेँ काले बादल कड़क रहे थे।
वो पल,
जब दिलो-दिमाग़ मेँ एक नशा छाया था,
एक-दूजे की आँखो मेँ प्यार उमड़ आया था।
वो पल,
जब भावनाऐँ प्रस्फुटित हो रही थी,
सारी दुनिया मानो सँकुचित हो रही थी।
वो पल,
जिन मेँ सारी ज़िन्दगी जी ली,
ज़माने भर की सारी खुशियाँ ले ली...
वो पल,
बीत तो गये पर जीवित हैँ,
आज भी यादोँ मेँ करीब हैँ...
कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।
ReplyDeletemere blog par swagat hai..
ReplyDeleteकहां से आया ये सॉरी...!
my new post......
वाह वाह क्या बात है....बढ़िया
ReplyDeleteसुंदर अतिसुन्दर बधाई
ReplyDeleteधन्यवाद आप सभी का...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है.
ReplyDeleteवो पल,
ReplyDeleteबीत तो गये पर जीवित हैँ,
आज भी यादोँ मेँ करीब हैँ...
और फिर जीवित रहना भी चाहिये वे पल .. यही तो जीवन है
सुन्दर
बहुत खूबसूरत पल संजोये हैं....
ReplyDeleteजो पल आपकी यादों में जिन्दा है उन्हें
ReplyDeleteसंभालकर जरूर रखिए
कई बार यादें ही जिन्दगी का सहारा बन जाती है
आपकी रचना बहुत ही शानदार है.
मिताली, तुम्हें आशीष। बस ऐसा ही लिखती रहो।
ReplyDeleteसराहनाओँ के लिए मैँ आप सभी का दिल से धन्यवाद अदा करना चाहती हूँ... मैँने तो लेखन के संसार मेँ चलना शुरू ही किया है, इसलिए आप सभी के आशीष, मार्गदर्शन और सहयोग की हमेशा ज़रुरत महसूस होगी... आभार...
ReplyDeleteकुछ कहूँगा नहीं..........
ReplyDelete:-)
बहुत ख़ूब...
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