बरसती शाम में
मिट्टी की महकती खुशबू
कभी करती है इशारा,
मेरे घर के आँगन में
तेरे आने का...
गरजते हुए बादल
सुना देते हैं मुझे
तेरे क़दमों की आहट...
मचल उठता है
ये बावरा सा मन
तेरे चेहरे की बस
एक झलक पाने को...
तभी तो ख्यालों में सजी
तेरी मासूम सी सूरत,
उड़ते-बिखरते बादलों में
बनती-बिगड़ती दिखती है...
फिर तुझे पाना,
तुझे हौले से छूना,
मेरे लिए बन जाता है
एक नादान से बच्चे की
शरारत भरी ज़िद...