Thursday, December 2, 2010

तुम...

सुबह-सुबह जब आँखें खोलूँ,
याद तुम्हारी आ जाती है..
पलकोँ के बंद दरवाज़े से भी
अंतर्मन मेँ बस जाती है..

कभी नहीं श्रँगार किया पर,
अब सजना अच्छा लगता है..
पहले मिलन की बेला का,
हर सपना सच्चा लगता है..

बारिश की बूँदों में अब तो,
अक्स तुम्हारा दिखता है..
अनजानी सी इस दुनिया में,
एक शख़्स हमारा दिखता है..

लम्बी काली रातें कटती हैं,
तारों से बातें कर-कर के..
हर पल तुमको याद करुँ मैं,
मन में आहें भर-भर के..

कब तक रस्ता ताकूँ मैं अब,
जल्दी से तुम आ जाओ..
भगवान मेरे तुम पूजूँ तुमको,
मेरे मन मंदिर में बस जाओ..