झुग्गी-झोपड़ियोँ मेँ रहने वाले,
फुटपाथोँ पर सोने वाले,
सड़कोँ पर भीख माँगने वाले,
होटलोँ मेँ जूठे बर्तन धोने वाले,
कूड़ा-करकट बिनने वाले...
कौन लोग होते हैँ ये?
इतने अजीब क्योँ होते हैँ ये?
तीन साल की पिँकी ने जब मुझसे ऐसे सवाल किए,
क्या बताऊँ उसके सवाल ने मेरे तो बुरे हाल किए।
पहलेपहल कुछ समझ ना पायी,
चुपचाप रही मैँ कुछ कह ना पायी।
कहती भी क्या अगर समझ भी जाती,
कह कर भी क्या मैँ समझा पाती।
कैसे कहती कि- "बेटा, वो लोग तो 'गरीब' हैँ..."
कैसे समझाती कि उनके हमसे अलग नसीब हैँ!
पिँकी ने मुझको झकझोरा,
मेरी खामोशी को तोड़ा।
बड़ी मासूमियत से उसने मुझको कहा-
"आपको नहीँ पता तो मैँ बताऊँ क्या?"
मैँने बोला पिँकी से चल तू ही बता,
मुझे नहीँ पता, मुझको तू ही समझा।
वो तपाक से बोली- 'कंगाल' ऐसे लोगोँ को कहते हैँ,
क्योँकि उनके पास खाने के रुपये नहीँ रहते हैँ।
अब मेरे पास तो कुछ भी रहा नहीँ समझाने को,
उस बच्ची को गरीबी या कंगाली के बारे मेँ बताने को।
उसे ये भी नहीँ पता कि कंगाल को ही गरीब कहा जाता है,
उसके सारे सवालोँ के जवाब मेँ 'गरीब' शब्द भी आता है।
उसने तो बस वही कहा जो इधर-उधर से सुना था,
उसकी सोच का दायरा अभी विकसित कहाँ हुआ था।
bachche to sawal karenge hi !lekin jara sochiye aisa kyo hai ?hamare desh me lokatantr ya janta ka raj hai dal roti we bhi khate hai dal roti ham bhi khate hai !
ReplyDeletearganikbhagyoday.blogspot.com
बहुत करीबी रचना
ReplyDeleteसवाल नसीबो का नही बल्कि व्यवस्था की है
बहुत सुन्दर रचना
kafi samvedansheel rachna....
ReplyDeleteऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.
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