Friday, September 16, 2011

दूरियां...

१)

कभी नापा न गया
मेरे घर की देहरी से
तेरे घर के दरवाज़े की
उस लम्बाई को...
इतना लम्बा रास्ता
जो कभी कम तो न हुआ,
पर बड़ा दिए थे उसने
तेरे मेरे दरम्यान
वो फासले...
हौले से उन फासलों ने
वो काम कर दिया,
जिससे भुला दिए गए
सब रूहानी जज़्बात
और पैदा कर दी गयी
कभी न मिटने वाली
दूरियां...



२)

ये सख्त सी धरती
और वो खाली सा आसमान,
कैसे महसूस करते हैं
अपने बीच की दूरियां...
शायद उनको भी लगता होगा
कि कहीं किसी ऐसी जगह
जहाँ एक क्षितिज होगा,
वहां हो पायेगा उनका मिलन...
पर वो चाह कर भी
नहीं पाट पाते
अपने बीच की
दूरियां...

10 comments:

  1. MITALI JI
    sundar rachna ke liye badhai sweekaren.
    मेरी १०० वीं पोस्ट , पर आप सादर आमंत्रित हैं

    **************

    ब्लॉग पर यह मेरी १००वीं प्रविष्टि है / अच्छा या बुरा , पहला शतक ! आपकी टिप्पणियों ने मेरा लगातार मार्गदर्शन तथा उत्साहवर्धन किया है /अपनी अब तक की " काव्य यात्रा " पर आपसे बेबाक प्रतिक्रिया की अपेक्षा करता हूँ / यदि मेरे प्रयास में कोई त्रुटियाँ हैं,तो उनसे भी अवश्य अवगत कराएं , आपका हर फैसला शिरोधार्य होगा . साभार - एस . एन . शुक्ल

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  2. खुद के उगाए अहम इतने बड़े हो जाते अहिं की दूरियां चाहते हुवे भी मिल नहीं पाती ... गहरी रचना है ...

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  3. गहन भावो को समेटती खूबसूरत और संवेदनशील रचना|

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  4. bhaut hi khbsurati se gahan bhaavo ko shabd diye hai aapne...

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  5. बेहतरीन अभिव्यक्ति!!

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