बरसती शाम में
मिट्टी की महकती खुशबू
कभी करती है इशारा,
मेरे घर के आँगन में
तेरे आने का...
गरजते हुए बादल
सुना देते हैं मुझे
तेरे क़दमों की आहट...
मचल उठता है
ये बावरा सा मन
तेरे चेहरे की बस
एक झलक पाने को...
तभी तो ख्यालों में सजी
तेरी मासूम सी सूरत,
उड़ते-बिखरते बादलों में
बनती-बिगड़ती दिखती है...
फिर तुझे पाना,
तुझे हौले से छूना,
मेरे लिए बन जाता है
एक नादान से बच्चे की
शरारत भरी ज़िद...
बेहद खूबसूरत रचना है आपकी...बधाई स्वीकारें...
ReplyDeleteनीरज
bahtreen aur sundar rachna...
ReplyDeleteवाह बहुत ही मनमोहक रचना।
ReplyDeleteतुझे हौले से छूना,
ReplyDeleteमेरे लिए बन जाता है
एक नादान से बच्चे की
शरारत भरी ज़िद...
वाह बहुत सुन्दर एहसास .. सुन्दर रचना
खूबसूरत जिद!!
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ReplyDeleteBahut hee sundar rachna...kalpna se paripurn :) imagination is the weapon of a poet/poetess...very well imagined and penned :)
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