मेरे ग़म ने तो मुझको हमेशा सहारा दिया
तेरी खुशियों को माँगा तो मुझको सज़ा मिली
हर तरफ से बस अँधेरे ने डराया मुझको
दिल जला के रौशनी की तो मुझको सज़ा मिली
उस तरफ कोई रास्ता ना गया जहाँ मंज़िल थी मेरी
इक भटकी सी मंज़िल चुनी तो मुझको सज़ा मिली
ना चाहा था खुद को धोखे में रखना कभी
पर एक सच को छुपाया तो मुझको सज़ा मिली
लफ्ज़, ख्याल, सपने, अरमान, सब खोते चले गए
फिर तन्हाई का सहारा लिया तो मुझको सज़ा मिली
ना ख्वाहिश चाँद-सितारों की, ना चाहा था गुल्ज़ारों को
बस एक पत्थर की पूजा की तो मुझको सज़ा मिली
मेरा आशियाना हरदम उजड़ता रहा तूफानों से
फिर भी मैं बस मुस्कायी तो मुझको सज़ा मिली
मेरी मुहब्बत पे तुझसे कोई सवाल करे ये मंज़ूर ना था
जो दिल में मैंने मुहब्बत छुपायी तो मुझको सज़ा मिली
ना ख्वाहिश चाँद-सितारों की, ना चाहा था गुल्ज़ारों को
ReplyDeleteबस एक पत्थर की पूजा की तो मुझको सज़ा मिली.... NICE>>>
ना ख्वाहिश चाँद-सितारों की, ना चाहा था गुल्ज़ारों को
ReplyDeleteबस एक पत्थर की पूजा की तो मुझको सज़ा मिली
बहुत गजब का लिखा है आपने।
सादर
Wah sundar :)
ReplyDelete--
Hamare bhi blog par aae ..or hume suggestions dein..:)
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बहुत अच्छी रचना...बधाई
ReplyDeleteनीरज
har saza ki bhi umar hoti h... ummeed karte hain k tumhari saza ki umar chhoti ho.. keep writing :)
ReplyDeleteमेरी मुहब्बत पे तुझसे कोई सवाल करे ये मंज़ूर ना था
ReplyDeleteजो दिल में मैंने मुहब्बत छुपायी तो मुझको सज़ा मिली
यही दस्तूर है....
logo ka kaam hi yahi hai....saja ko unki ada samjhe aur manzil k liye safar tay karti rahe...yahi behtar hoga.
ReplyDeletesunder rachna.
मेरा आशियाना हरदम उजड़ता रहा तूफानों से
ReplyDeleteफिर भी मैं बस मुस्कायी तो मुझको सज़ा मिली
.... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
ना चाहा था खुद को धोखे में रखना कभी
ReplyDeleteपर एक सच को छुपाया तो मुझको सज़ा मिली
waah
तेरी खुशियों को माँगा तो मुझको सज़ा मिली
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
bahut sunder bhav ki sunder racna..........
ReplyDeleteकल 09/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत गहरा सोच और अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ………शानदार्।
ReplyDeleteना चाहा था खुद को धोखे में रखना कभी
ReplyDeleteपर एक सच को छुपाया तो मुझको सज़ा मिली
वाह शानदार
ना ख्वाहिश चाँद-सितारों की, ना चाहा था गुल्ज़ारों को
ReplyDeleteबस एक पत्थर की पूजा की तो मुझको सज़ा मिली
bahut khub
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteमेरा आशियाना हरदम उजड़ता रहा तूफानों से
ReplyDeleteफिर भी मैं बस मुस्कायी तो मुझको सज़ा मिली.........Wah !
kya kahne !!
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great
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