Monday, June 28, 2010

यादें.....

फूल सी नाजुक यादें,
काँटों सी चुभती यादें...
रेशम सी कोमल यादें,
चोट सी दुखती यादें...

पर्वत सी कठोर यादें,
नदियों सी निर्मल यादें...
धरती सी द्रढ़ यादें,
आकाश सी उज्जवल यादें...

गर्मी सी गर्म यादें,
सर्दी सी सर्द यादें...
बहार सी खुशनुमा यादें,
सूखे पत्ते सी सर्द यादें...

यादें यादें यादें,
बस यादें यादें यादें...
जन्म होने से ले कर मरने तक,
बचपन से ले कर जीवन के आखिर तक,
छोटी यादें, बड़ी यादें...
खट्टी यादें, मीठी यादें...
यादें यादें यादें,
बस यादें यादें यादें...

Monday, June 7, 2010

जीने के लिए...

सिर्फ सांस लेना ही जरुरी नहीं जीने के लिए,
कभी कुछ अरमान भी सजाना जीने के लिए...


इक मंजिल का तकाज़ा जरुरी है जीने के लिए,
बस मुश्किलों से कभी ना हारना जीने के लिए...


खुशियों के हर पल ढूंढना जीने के लिए,
पर ग़मों से कभी ना डरना जीने के लिए...


आसमान छूने का हौसला रखना जीने के लिए,
पर अपनी ज़मीन ना छोड़ना जीने के लिए...


रास्ते खुद-ब-खुद बन जायेंगे "जिंदगी" जीने के लिए,
बस उम्मीदों का दामन थामे रखना जीने के लिए...

Saturday, June 5, 2010

"शर्मा जी की गरीबी"

महफ़िल सजी हुयी थी,
हंसी ठहाकों का माहौल था।
हर कोई अपनी तारीफों के पुल बांध रहा था।
कभी किसी बात पर चर्चा हो रही थी,
तो कभी गुफ्तगू और कभी बहस।
हर कोई मशगूल था,
एक-दूसरे के सवालों-जवाबों में।
सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था।

इतने में शर्मा जी बोल उठे-
"यार, आजकल कंगाली छायी है, हाथ बहुत तंग है।"

अरे ये क्या?
सबका ध्यान अपनी बातों से हटके
शर्मा जी पर आ टिका।

"ऐसा क्या हो गया शर्मा जी??"
"आप का बेटा तो विदेश में है ना !!"
"अरे, पिछले हफ्ते ही तो आपने नयी कार ली है ना..."
और ना जाने कितने ही सवाल
मिसाइल की तरह शर्मा जी की तरफ रुख कर गए।

शर्मा जी का मुंह खुला,
जवाब-देही के लिए...
"अम़ा, काहे की नयी गाड़ी,
और मैं तो पछता रहा हूँ लड़के को विदेश भेज कर..."

सबने पूछा-"भला ऐसा क्यूँ शर्मा जी???"
"यहाँ होता तो कुछ काम-धंधा करता,
दो पैसे कमाता और मेरा हाथ बंटाता।
वहां बैठ के मुफ्त की रोटी तोड़ रहा है,
और यहाँ मेरा बैंक-बैलेंस ख़तम हो रहा है।
लाखों लग गए फीस में, रहने-खाने में,
अभी नयी कार में।
दो साल में रिटायर हो जाऊंगा,
तब पैसा कहाँ से लाऊंगा।"

माहौल में सन्नाटा छाता जा रहा था।
सबको शर्मा जी की गरीबी पर
बड़ा अफ़सोस हो रहा था।

दो गाड़ियाँ, एक बड़ा मकान,
इकलौता लड़का, वो भी विदेश में;
इन सबके बावजूद
सबको शर्मा जी गरीब लगे।

वाह शर्मा जी! वाह!!
आपकी गरीबी ने तो गजब कर दिया।
फुटपाथ में रहने वाले गरीबों को,
भूखे, अधनंगे, भिखमंगों को,
गरीबी रेखा से नीचे वालों को,
विलुप्त प्राणी घोषित कर दिया...
और आपके जैसे ना जाने कितनों को,
गरीब घोषित कर दिया...