१)
कभी नापा न गया
मेरे घर की देहरी से
तेरे घर के दरवाज़े की
उस लम्बाई को...
इतना लम्बा रास्ता
जो कभी कम तो न हुआ,
पर बड़ा दिए थे उसने
तेरे मेरे दरम्यान
वो फासले...
हौले से उन फासलों ने
वो काम कर दिया,
जिससे भुला दिए गए
सब रूहानी जज़्बात
और पैदा कर दी गयी
कभी न मिटने वाली
दूरियां...
२)
ये सख्त सी धरती
और वो खाली सा आसमान,
कैसे महसूस करते हैं
अपने बीच की दूरियां...
शायद उनको भी लगता होगा
कि कहीं किसी ऐसी जगह
जहाँ एक क्षितिज होगा,
वहां हो पायेगा उनका मिलन...
पर वो चाह कर भी
नहीं पाट पाते
अपने बीच की
दूरियां...
बहुत खूब।
ReplyDeleteसादर
MITALI JI
ReplyDeletesundar rachna ke liye badhai sweekaren.
मेरी १०० वीं पोस्ट , पर आप सादर आमंत्रित हैं
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ब्लॉग पर यह मेरी १००वीं प्रविष्टि है / अच्छा या बुरा , पहला शतक ! आपकी टिप्पणियों ने मेरा लगातार मार्गदर्शन तथा उत्साहवर्धन किया है /अपनी अब तक की " काव्य यात्रा " पर आपसे बेबाक प्रतिक्रिया की अपेक्षा करता हूँ / यदि मेरे प्रयास में कोई त्रुटियाँ हैं,तो उनसे भी अवश्य अवगत कराएं , आपका हर फैसला शिरोधार्य होगा . साभार - एस . एन . शुक्ल
dooriyo ka marusthal bahut dukhdayak hai . sunder rachna.
ReplyDeletebahut sunder...........
ReplyDeleteरियली गुड वन
ReplyDeleteखुद के उगाए अहम इतने बड़े हो जाते अहिं की दूरियां चाहते हुवे भी मिल नहीं पाती ... गहरी रचना है ...
ReplyDeleteगहन भावो को समेटती खूबसूरत और संवेदनशील रचना|
ReplyDeletebhaut hi khbsurati se gahan bhaavo ko shabd diye hai aapne...
ReplyDeleteये दूरियां :)
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति!!
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