Wednesday, September 14, 2011

देखना है...

ख़्वाबों को सच होते हुए देखना है
फ़लक को करीब से छू कर देखना है

काँटों ने चुभन दी तो हम संभल गए
फूलों की छुवन से हमें रोकर देखना है

बरसात के पानी से है आँगन भरा हुआ
कागज़ की एक कश्ती को उतारकर देखना है

भीड़ में ज़माने की कई चेहरे नज़र आये
किस गली में कौन चोर है, यार देखना है

आईने में खुद को देखा है तमाम उम्र
अब तेरी नज़र से अपना अक्स देखना है

उससे मेरा रिश्ता महका किया बरसों तलक
कैसे कहेगा अजनबी, मुझको ये देखना है

खताओं के बदले सज़ा का रिवाज़ पुराना है
इम्तिहाने-इश्क से गुज़र कर देखना है

सह गए तेरे संग मोहब्बत के रंजो-ग़म
अब अकेले इस राह पे मर कर देखना है

8 comments:

  1. bhut sunder.."Hindi diwas ki haardik subhkaamnaye"

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  2. "सह गए तेरे संग मोहब्बत के रंजो-ग़म
    अब अकेले इस राह पे मर कर देखना है" is not relate to ur above written line... i think no need to this line.

    Theme is very good well written. :)

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  3. आईने में खुद को देखा है तमाम उम्र
    अब तेरी नज़र से अपना अक्स देखना है

    ....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..

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  4. खताओं के बदले सज़ा का रिवाज़ पुराना है
    इम्तिहाने-इश्क से गुज़र कर देखना है

    बहुत ही नेक विचार पेश किये है सुंदर गज़ल के माध्यम से. बधाई.

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  5. ख़्वाबों को सच होते हुए देखना है
    फ़लक को करीब से छू कर देखना है... ahi khaha aapne dekhna to hai....

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  6. प्रवाहमयी काव्य , सुन्दर

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  7. कितनी खूबसूरत ख्वाहिशें हैं...

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