इन पलकों को आराम मिलेगा,
दरवाज़े पर नज़रें गड़ाये रहने से...
कब पड़ेगा पहला कदम तुम्हारा
मेरी दुनिया में, मेरे सपनों में,
मेरी ज़िन्दगी में
और कब ख़त्म होगी मेरी प्रतीक्षा...??
तुम्हारी ये प्रतीक्षा
वेदना के सिवाय क्या देती है??
वो दुःख अन्दर तक
घायल कर देता है
और अंतर्मन में बसी
तुम्हारी तस्वीर
जैसे हंसती है मुझ पर,
मेरी तन्हाई पर...
पर तुम्हे इससे क्या??
तुमने तो कसम खायी है
मुझसे न मिलने की,
मुझसे लुका-छिपी खेलने में ही
शायद तुम्हें आनंद मिलता हो...
पर क्या
इन आँखों से बहते आंसू
और साँसों की बढ़ी हुयी रफ़्तार भी
तुम्हें विचलित ना कर सकी??
कभी तो
मुझसे मिलने आते,
कभी तो
मेरे संदेशों का जवाब देते,
कभी तो
मेरी हालत पर तरस खाते,
और अहसान समझ के ही सही
मुझसे मिलने आ जाते...
तब शायद किसी दिन
मेरी पलकों को आराम मिल जाता,
मेरे सपनों को नया आयाम मिल जाता,
और तुम्हारी प्रतीक्षा में
मेरा जीवन सफल हो जाता...
"कभी तो
ReplyDeleteमेरी हालत पर तरस खाते,
और अहसान समझ के ही सही
मुझसे मिलने आ जाते.."
बहुत बढ़िया.
सादर
उत्तम अति उत्तम !!
ReplyDeleteतब शायद किसी दिन
ReplyDeleteमेरी पलकों को आराम मिल जाता,
मेरे सपनों को नया आयाम मिल जाता,
और तुम्हारी प्रतीक्षा में
मेरा जीवन सफल हो जाता...
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...
तुम्हारी ये प्रतीक्षा
ReplyDeleteवेदना के सिवाय क्या देती है??
dard ukerti rachna
बहुत ही सुंदर और एहसासपूर्ण।
ReplyDeleteयह प्रतीक्षा भी कितना दर्द देती है ...अच्छी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteक्या कहूं दर्द में इन्तज़ार या फ़िर इन्तज़ार का दर्द ..........
ReplyDeleteबेहतरीन .....
प्रणय और विरह की वेदना को सटीक शब्द दिए हैं आपने...बधाई
ReplyDeleteनीरज
यशवंत माथुर से लेकर नीरज गोस्वामी तक, सबने जो कहा, वो ही मैं भी कहता हूं। अदभुत
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...
ReplyDeletebeautiful composition, aap asal me dhund kya rahi hai.
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