Sunday, July 18, 2010

प्रेम मेँ...

तुम्हारा आना
तपती रेत पर
पानी के फव्वारे सा लगा,
जिसने मेरे तपते मन को
शीतलता पहुँचायी थी...

तुम्हारा मिलना
दिन मेँ देखे
सपने के पूरा होने सा लगा,
जिससे मेरे जीवन मेँ
नई रंगीनियाँ छायी थी...

तुम्हारा देखना
मुझ पर पड़े
चमकते प्रकाश सा लगा,
जिसने मेरे चेहरे की
सुन्दरता बढ़ायी थी...

तुम्हारा बोलना
सुध-बुध खो
देने वाली आवाज़ सा लगा,
जिसके लिए मैँ
बरसोँ से बौरायी थी...

तुम्हारा मुस्कुराना
खिले बाग मेँ
आयी नई बहार सा लगा,
जिससे मेरे जीवन मेँ
खुशियाँ आयी थी...

तुम्हारे पास होने की अनुभूति ने
जीवन का एक
अलग रूप दिखाया था...
अच्छे से तो याद नहीँ पर
शायद,
ऐसा ही हुआ था
प्रेम मेँ...

16 comments:

  1. अच्छे से तो याद नहीँ पर
    शायद,
    ऐसा ही हुआ था
    प्रेम मेँ...

    pooree kriti khoobsoorat hai aur yeh to behad hee khoobsoorat hai
    अच्छे से तो याद नहीँ पर
    शायद,
    ऐसा ही हुआ था
    प्रेम मेँ...

    sach, ailsa laga jaise behad achchhe bhojan ke ant men manpasand mithaee bhee mil gaee ho. badhai

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  2. आप सभी का हार्दिक धन्यवाद जो आप सब मुझे हर समय प्रोत्साहित करते हैँ...

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  3. शायद,
    ऐसा ही हुआ था
    प्रेम मेँ...

    यकीनन,
    ऐसा ही हुआ था
    प्रेम मेँ...

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  4. सच लिखती हो एहसासों को सुंदर शब्द दिए हैं.

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  5. मिताली जी, प्रेम की कोमल अनुभूति की बढ़िया अभिव्यक्ति...बहुत प्यारी रचना.

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  6. बेहतरीन रचना..बधाई
    नीरज

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  7. Bhut hi khubsurat rachna...my blog is "kaavya kalpna"..at http://satyamshivam95.blogspot.com/ aap aaye aur mera margdarshan kare,.thnks

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  8. बहुत अच्छा....मेरा ब्लागः"काव्य कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com .........साथ ही मेरी कविता "हिन्दी साहित्य मंच" पर भी.......आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे...धन्यवाद

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  9. तुम्हारे पास होने की अनुभूति ने
    जीवन का एक
    अलग रूप दिखाया था...
    अच्छे से तो याद नहीँ पर
    शायद,
    ऐसा ही हुआ था
    प्रेम मेँ...

    बेहद खूबसूरत कविता.

    सादर

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  10. वाह प्रेम का सुन्दर निरुपण्।

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  11. बहुत सुन्दर प्रेमाभिव्यक्ति ! बहुत खूब !
    तुम्हारा मुस्कुराना
    खिले बाग मेँ
    आयी नई बहार सा लगा,
    जिससे मेरे जीवन मेँ
    खुशियाँ आयी थी...
    बेहतरीन पंक्तियाँ !

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  12. खूब लिखा है लिखती रहना.
    उदगारों को कहती रहना.

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