Monday, July 5, 2010

आज फिर...

आज फिर,
पँछी बन दूर गगन विचरना है।
अरमानोँ मेँ पँख लगा कर फिरना है।
आज फिर,
सोए ख्वाबोँ को मन मेँ जगाना है।
खोयी यादोँ को गले लगाना है।
आज फिर,
अन्याय के खिलाफ आवाज उठानी है।
दिल मेँ एक मशाल जलानी है।
आज फिर,
बेसहाराओँ का सहारा बनना है।
अपने अधिकारोँ के लिए लङना है।
आज फिर,
भ्रष्टाचार से पूरा देश बचाना है।
आतंकवाद से पूरा विश्व बचाना है।
आज फिर,
अंधविश्वास की दीवार गिरानी है।
रूढ़िवादी कालिख मिटानी है।
आज फिर,
सूने पथ पर कदम बढ़ाना है।
यूँ ही आगे बढ़के मंजिल को पाना है।

4 comments:

  1. nayi umar k kachche sapne...dunia se bacha kar rakhna magar apne liye nahi..dunia k liye hi... sundar rachnaayein..

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  2. बहुत ही उम्दा रचना !!

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