Saturday, July 17, 2010

कठपुतली...

मैँ एक कठपुतली हूँ,
इशारोँ मेँ नाचने वाली...
चुपचाप, बेहिसाब,
बिना सवाल, बिना जवाब...

मेरा नाम औरत है,
मैँ कठपुतली हूँ
क्योँकि
मैँ गरीब हूँ...
मेरा कोई अस्तित्व नहीँ,
मेरी कोई शान नहीँ,
मेरा कोई सपना नहीँ,
मेरी कोई पहचान नहीँ...
तन नहीँ ढकता मेरा फटे हुए कपड़ोँ से,
पेट नहीँ भरता मेरा एक सूखी रोटी से...
इमारतेँ खड़ी करने के लिए
मैँ मजदूरी करती हूँ,
खुद ज़िन्दा रहने के खातिर
मैँ मजबूरी सहती हूँ...
मेरी डोर ना मेरे हाथोँ,
मैँ खुलकर ना रह पाँऊ,
मेरी डोरी जिसके हाथ मेँ,
उसकी मर्जी से नाच दिखाँऊ...
मैँ पागल कठपुतली...

मेरा नाम भी औरत है,
पर मैँ गरीब नहीँ हूँ...
मेरा एक अस्तित्व है,
और मेरी ऊँची शान है,
मेरे बहुत सपने हैँ,
और मेरी अलग पहचान है...
तन ढकता है मेरा अच्छे महंगे कपड़ोँ से,
पेट हमेशा भरता है स्वादिष्ट पौष्टिक खाने से...
अपने पैरोँ पर खड़ी हूँ मैँ
अब दफ्तर जाती हूँ,
मुझसे परिवार चलता है
अच्छी तन्ख्वाह कमाती हूँ...

लेकिन फिर भी
मेरे मन की कभी ना होती
मैँ भी निर्भर रहती,
क्योँकि
मेरी डोर ना मेरे हाथोँ
मैँ खुलकर ना रह पाँऊ,
मेरी डोरी जिसके हाथ मेँ
उसकी मर्जी से नाच दिखाँऊ...

मैँ बस एक कठपुतली हूँ
इशारोँ मेँ नाचने वाली...
चुपचाप, बेहिसाब,
बिना सवाल, बिना जवाब...

4 comments:

  1. शानदार पोस्ट

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  2. वाह क्या कठपुतली हो। अपनी व्यथा तो बयान कर ही दी न। पर आजाद तो खुद ही होना होगा। हर कोई चाहे पुरुष भी क्यों न हो कहीं न कहीं कठपुतली हो जाता है। हां महिलाएं ज्यादा हैं। पर पुरुष भी कम नहीं पिसता। वैसे उम्मीद है कि आप कठपुतली नहीं बनेंगी।

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  3. Sach aadhunik ho ya paaramparik...aurat hamesha kathputli hi rahegi....

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  4. यह कठपुतली सजीव हो जाए तो कइयों को कठपुतली की तरह नचाने का माद्दा रखती है

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