Monday, July 12, 2010

भ्रष्टाचार

जनता की प्रतिनिधी है सरकार,
फिर भी फैल रहा भ्रष्टाचार।
क्योँ हर तरफ है रिश्वतखोरी?
हर कोई भर रहा अपनी तिजोरी।
क्या होगा जनता का कल्याण,
जब नेता रखेँगे बस खुद का ध्यान!
ऐसे मेँ,
इस देश की हालत क्या होगी?
हर तरफ मुफ्तखोरी और महंगाई होगी।
जनता क्या करेगी बेचारी,
उसकी तो है बस लाचारी।
क्या करे, जनता को अब कुछ समझ ना आए,
किसे वोट दे और किसकी सरकार बनाए?
हर तरफ है बस लुभावने वादे,
भ्रष्टाचारी नेताओँ के नकली इरादे।
जनता का तो काम है पिसना,
और नेताओँ का काम खिसकना।
अब कौन उठाएगा देश का भार?
कौन बनेगा ज़िम्मेदार?
जब फैल रहा हो भ्रष्टाचार,
तब कौन बनेगा तारण-हार?

1 comment:

  1. समसामयिक रचना
    सुन्दर अभिव्यक्ति .. हकीकत बयान करती हुई सी

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