Sunday, July 11, 2010

शायरी का किस्सा...

बाहर बारिश बरस रही थी,
और मैँ अंदर तरस रही थी।
सोचा था घूमूँगी-फिरूँगी,
मनचाही मैँ मौज़ करुँगी।
पर बारिश ने काम बिगाड़ा,
मेरा सारा प्लान बिगाड़ा।
मैँने सोचा क्या किया जाए,
कैसे समय बिताया जाए?
देखी पास मेँ रखी डायरी,
मन मेँ आयी एक शायरी।
सोचा क्योँ ना कलम उठाऊँ,
फिर से कोई नज़्म बनाऊँ।
मन मेँ उमड़े कई विचार,
शुरुआत हो गई आखिरकार।
"वो एक नज़र न जाने क्या असर कर गई,
यूँ पड़ी मुझ पर कि मेरा कतल कर गई".
अभी तो मैँ बस इतना ही लिख पायी थी,
दरवाजे पर किसी ने घण्टी बजायी थी।
मैँने जब खिड़की खोली,
दरवाजा खोल - बुआ बोली।
जैसे ही वो अंदर आयी,
मानो आफत संग लायी।
माँ ने बोला - चाय पिला दे,
थोड़ी सी नमकीन खिला दे। मैँने कहा - अभी मैँ लायी,
इतना कहकर रसोई मेँ आयी।
पाँच मिनट मेँ चाय बनाई,
और प्लेट मेँ नमकीन सजाई।
चाय लिए जब मैँ कमरे मेँ पहुँची,
मेरे कानोँ मेँ बुआ की आवाज़ घुसी।
उन्होँने पास रखी मेरी डायरी खोली थी,
नई लिखी शायरी पढ़कर माँ से बोली थी-
"भाभी, आपकी लड़की तो बिगड़ रही है,
आवारा लफंगोँ की तरह शायरी कर रही है..."
इतना सुनते ही मैँ हैरान हुई,
खुद को 'आवारा' सुनकर परेशान हुई।
माँ ने उन्हेँ सफाई देना शुरु किया,
शायद मेरी गवाही देना शुरु किया।
ये तो मेरी बेटी का शौक है,
इसीलिए लिखने मैँ बेखौफ है।
बुआ ने माँ पर चिल्लाना शुरु कर दिया,
शायरी की कमियाँ गिनाना शुरु कर दिया।
"शायरी आवारा लोग लिखते हैँ,
जो प्यार मेँ पागल होते हैँ।
भाभी, अपनी लड़की को संभालो,
उसके आशिक को ढूँढ निकालो,
जिसके लिए वो शायरी लिख रही है
और जिसे महबूब कह रही है..."
गुस्से मेँ आकर मैँने उन्हेँ घूरा,
उन्होँने भी मेरा मुआयना किया पूरा।
माँ को बोली - "लड़की हो गई बड़ी,
शुरु करो तैयारी इसकी शादी की।
वरना लड़की बिगड़ जायेगी,
तुम्हारे हाथ से फिसल जायेगी।
कहो तो मैँ ढूँढू बढ़िया लड़का,
बिलकुल तुम्हारी जात-पात का..."
माँ कुछ भी ना बोली,
बस एक मुस्कान बिखेरी।
मैँ अपने कमरे मेँ आ गई,
अपनी डायरी साथ ला गई।
सोचा कि करूँ शायरी पूरी,
जो पहले रह गई अधूरी।
धीरे-धीरे सोच-सोच कर,
विचारोँ को जोड़-तोड़ कर।
शायरी नहीँ रही अधूरी,
वो अब हो गई थी पूरी।
मन किया बुआ के पास मैँ जाऊँ,
पास बिठाकर शायरी पढ़ाऊँ।
फिर पूछूँ मैँ बिगड़ी हूँ क्या,
माँ के हाथ से फिसली हूँ क्या?
शायरी बिगड़े लोगोँ की निशानी है क्या,
आवारा लफंगो की कहानी है क्या?
पर उनके पास नहीँ होगा कोई जवाब,
क्योँकि वो देख रही हैँ ख़्वाब।
मेरे लिए एक बढ़िया लड़का ढूँढने का,
और वो भी हमारी जात-पात का...

4 comments:

  1. हा हा हा बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...बहुत खूबसूरत रचना...!!
    असल मे इन बुआ लोगों का तो काम ही यही होता है...आप यूँ ही सुंदर सुंदर लिखती रहे,,,

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  2. बुआ को लड़का देखने दीजिये...आप लिखती रहिये...

    नीरज

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  3. Are aisi kai bua...mausi aur chachi mere ghar me bhi hain...bekhauf rahiye...maa to bina bole sath de rahi h...aur saamne na sahi magar moral support to hamara bhi hai..mazedaar thi...meri aapbiti...

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  4. सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत आभार.

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