Friday, July 2, 2010

मन और इच्छाऐँ...

तन के किसी कोने मेँ बसा
एक छोटा सा संसार।
मन रूपी संसार,
एक प्यारा सा संसार...
ये संसार ही तो है
अनगिनत आशाओँ का
और कई उम्मीदोँ का।
एक ऐसा संसार,
जहाँ आशाऐँ नई उम्मीदेँ जगाती हैँ
और उम्मीदेँ जीना सिखाती हैँ।
ठोकर खाना, फिर गिरना,
फिर उठना, फिर चलना,
इस संसार का एक किस्सा है,
और इस जिँदगी का हिस्सा है।
कभी देखा है गौर से
किसी चिङिया को स्वछंद आसमान मेँ
विचरण करते हुऐ?
उसके छोटे छोटे पंखोँ मेँ
विशाल से आसमान को नापने का
बुलन्द हौसला होता है।
इसी लिए तो वो किसी के रोके नहीँ रुकती,
उसके पंखोँ की उङान कभी नहीँ थमती।
बिलकुल इसी तरह
स्वछंद चिङिया रूपी अनगिनत इच्छाऐँ
हमारे मन रूपी आसमान मेँ विचरती रहती हैँ
बिना रुके, बिना थके...
इस मन की तो कोई सीमा ही नहीँ होती,
पर इच्छाओँ की क्षमता भी कम नहीँ होती।
जितना विस्त्रत मन का संसार,
उतना मुश्किल इच्छाओँ का पार।
आसमान मेँ विचरती चिङिया
और मन मेँ विचरती इच्छा
एक दूसरे की पूरक हैँ,
एक दूसरे की जरूरत हैँ।
इसलिए मन के इस संसार मेँ
साँस लेने दो इच्छाओँ को...
ये मत सोचना कि
क्या इच्छाऐँ पूरी होँगी
और अपनी मंजिल पाऐँगी?
क्योँकि
इच्छाओँ की कोई मंजिल नहीँ होती।
ये स्वतः ही पूरी हो जाती हैँ,
और स्वतः ही नई पैदा हो जाती हैँ।
जरूरत है तो बस हौसला रखने की,
और इच्छापूर्ति के लिए प्रयासरत रहने की...

5 comments:

  1. जरूरत है तो बस हौसला रखने की,
    और इच्छापूर्ति के लिए प्रयासरत रहने की...

    बहुत सुंदर पंक्तिया है...उम्दा रचना...

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  2. बहुत खूबसूरत और सकारात्मक सोच.....सुन्दर अभिव्यक्ति

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  3. मंगलवार 06 जुलाई को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है आभार

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  4. इच्छाओँ की कोई मंजिल नहीँ होती।
    ये स्वतः ही पूरी हो जाती हैँ,

    वाह...कमाल की रचना है आपकी...बधाई स्वीकार करें...
    नीरज

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