Friday, August 3, 2012

दर्द...

कुछ शब्द,
जिनका अर्थ शायद कोई
समझ ना सके,
अपने मायने खो देता है...


कुछ ज़ख्म,
जिनका दर्द शायद कोई
महसूस ना कर सके,
अपने एहसास खो देता है...


कुछ शब्द समझा नहीं पाते
दर्द के एहसास को,
और कुछ दर्द ऐसे भी हैं
जो शब्दों में बयान नहीं हो पाते...


क्यूँ जुबां तक आते-आते
दर्द आँखों से बह जाता है,
और क्यूँ ज़ख्मों को वक़्त पर
शब्द नहीं मिल पाता है...


क्यूँ उम्मीदों को हमेशा
ठोकरें मिला करती हैं,
और क्यूँ सपनों को हमेशा
हकीकत छला करती हैं...


आस-पास कोई अपना नहीं,
आँखों में कोई सपना नहीं,
गुज़रती ज़िन्दगी में कल नहीं,
हँसते-मुस्कुराते दो पल नहीं...


बस ये दर्द ही साथ रहता है,
जिंदा होने का एहसास रहता है...

Saturday, May 26, 2012

संपूर्ण प्रेम और मनुष्य

मनुष्य,
जो पैदा हुआ है
अपने जीवन के कुछ महत्वपूर्ण,
कुछ अर्थपूर्ण उद्देश्य को
प्राप्त करने के लिए,
मुश्किल से समझ पाता है
अपने जीवन के
उन्हीं उद्देश्यों को...

कई तरह के उद्देश्यों में से,
शायद,
संपूर्ण प्रेम के अर्थ को समझना ही
मनुष्य का सबसे अहम्,
सबसे जीवंत उद्देश्य हो...

प्रेम का अस्तित्व
कहीं और नहीं मिलता,
संपूर्ण सृष्टि की,
संपूर्ण शक्ति से,
अपनी मानसिक चेतना को
जागृत करने पर
स्वतः ही ये ज्ञात हो जाता है
कि संपूर्ण प्रेम का आधार
स्वयं मनुष्य के भीतर ही है...

इस सृष्टि का
बेहतर और बदतर होना,
मनुष्य के स्वयं के
बेहतर और बदतर होने से जुड़ा है...

संपूर्ण प्रेम की ताकत  ही
मनुष्य को बेहतर बना सकती है,
क्योंकि मनुष्य की चेतना
संपूर्ण प्रेम से जागृत हो कर,
मनुष्य को हमेशा
बेहतर से बेहतर बनाने की ही
चेष्टा करती है...

और अंततः
वो एक क्षण आ जाता है
जब मनुष्य को
ये ज्ञात हो जाता है
कि उसके जीवन का
अब तक का अनजाना उद्देश्य
क्या है,
संपूर्ण प्रेम का अर्थ
क्या है,
और उसका मनुष्य होना
क्या है...

Monday, May 7, 2012

काश तुम साथ चलते...

कठिन था बहुत मेरी मंज़िल का सफ़र,
बड़ी उम्मीद थी तुमसे, काश तुम साथ चलते...

ख़बर थी मुझे कि तमाम-उम्र कोई साथ नहीं देता,
दो चार कदम  ही सही, काश तुम साथ चलते...

तुम्हारे आने की आहट ने जगाया मुझे ख़्वाबों से,
हक़ीकत ना सही ख़्वाबों में ही सही, काश तुम साथ चलते...

खिली धूप, महकती राह में हमें साथ चलना था,
वीराने भी बहार बन जाते, काश तुम साथ चलते...

इक मेरे दिल को ही नहीं थी आरज़ू तेरी जुस्तजू तेरी,
मैंने ज़िन्दगी तुझपे वारी थी, काश तुम साथ चलते...

समझा के मुझे बेफ़िक्री से तुम अपनी राह निकल गए,
साथ होते तो ये मंज़र बदलता, काश तुम साथ चलते...

खुद ही फ़ैसला कर के मुझे तनहा छोड़ दिया तुमने,
खाके मेरी तन्हाई पे तरस, काश तुम साथ चलते...

माना की रिश्तों में बड़ा दर्द था, बड़ी तकलीफ़ थी,
मेरी मुहब्बत को याद करके ही सही, काश तुम साथ चलते...

Wednesday, January 18, 2012

ख़्वाब टूट गया...

कितनी मुद्दतों के बाद

कल रात मिले थे

जब ख़्वाबों में हम,

तुम्हारे अक्स को देखा

और हकीकत मान लिया मैंने...

कंपकंपाती हुयी उँगलियों से

छूकर तुम्हारे चेहरे को

महसूस करना चाहा था जब,

बड़ा सर्द था वो एहसास

तुम्हारी छुअन का...

महकती हुयी सी खुशबू

जो हर घड़ी, हर लम्हा

मेरे अरमानों से जुड़ी रहती है,

ख़्वाबों में भी बांधे रखती थी

मेरा तुम्हारा दामन...

आज क्यूँ ऐसा हुआ

कि तुम्हारा मेरे सामने होना

मुझे प्रतीत न हुआ!

तुम्हारी छुअन, तुम्हारी महक

मुझे महसूस ना हो सकी...

माना कि ख़्वाबों और हकीकत में

ज़मीन से फ़लक का फासला है

पर एक रोज़,

मेरी ज़ुल्फों के साये में

बड़ी मासूमियत से तुमने ही कहा था

कि हमारे दरम्यान कोई फासला नहीं,

कोई बंधन नहीं...

फिर क्यूँ आज ख़्वाबों में

तुम्हे छूना, तुम्हे महसूस करना

मेरे लिए मुमकिन ना था!

तुम्हे पाने की चाहत मेरी

ख़्वाबों में भी पूरी ना हो सकी,

तरसती हुयी छलकती आँखें

संजो ना सकी तुम्हे पाने का अरमान

और हमेशा की तरह फिर से

मुद्दतों बाद देखा हुआ ख्वाब,

एक पल में ही टूट गया...

Monday, January 16, 2012

तलाश...

ज़िन्दगी भर
बस भागते ही रहना,
एक अनजानी तलाश के पीछे,
जहाँ कुछ भी हाथ नहीं आता,
जहाँ कुछ भी मन नहीं पाता,
झुंझला के रख देता है मुझे...
आज तक ये ना समझा मन
कि इसे तलाश किसकी है,
और यही अनजानी, अनसुलझी तलाश
कभी पूरी ना हो पाई,
गोया मेरी किस्मत में
बस भागना ही लिखा है...
ज़िन्दगी जीने के वक़्त
बेसबब भागना
ना तो तलाश पूरी करता है,
ना ही ज़िन्दगी जीने देता है
और धीरे-धीरे
हाथ से छूटता जाता है सबकुछ
पीछे,
कहीं दूर...