Monday, May 7, 2012

काश तुम साथ चलते...

कठिन था बहुत मेरी मंज़िल का सफ़र,
बड़ी उम्मीद थी तुमसे, काश तुम साथ चलते...

ख़बर थी मुझे कि तमाम-उम्र कोई साथ नहीं देता,
दो चार कदम  ही सही, काश तुम साथ चलते...

तुम्हारे आने की आहट ने जगाया मुझे ख़्वाबों से,
हक़ीकत ना सही ख़्वाबों में ही सही, काश तुम साथ चलते...

खिली धूप, महकती राह में हमें साथ चलना था,
वीराने भी बहार बन जाते, काश तुम साथ चलते...

इक मेरे दिल को ही नहीं थी आरज़ू तेरी जुस्तजू तेरी,
मैंने ज़िन्दगी तुझपे वारी थी, काश तुम साथ चलते...

समझा के मुझे बेफ़िक्री से तुम अपनी राह निकल गए,
साथ होते तो ये मंज़र बदलता, काश तुम साथ चलते...

खुद ही फ़ैसला कर के मुझे तनहा छोड़ दिया तुमने,
खाके मेरी तन्हाई पे तरस, काश तुम साथ चलते...

माना की रिश्तों में बड़ा दर्द था, बड़ी तकलीफ़ थी,
मेरी मुहब्बत को याद करके ही सही, काश तुम साथ चलते...

7 comments:

  1. बेहतरीन। काश तुम साथ चलते

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  2. माना की रिश्तों में बड़ा दर्द था, बड़ी तकलीफ़ थी,
    मेरी मुहब्बत को याद करके ही सही, काश तुम साथ चलते...
    ..यह काश ही तो है जो एक कसक छोड़ देता है मन के अन्तःस्थल पर..
    बहुत बढ़िया रचना..

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  3. कठिन था बहुत मेरी मंज़िल का सफ़र,
    बड़ी उम्मीद थी तुमसे, काश तुम साथ चलते...बहुत सुंदर मन के भाव ...
    प्रभावित करती रचना .
    ..

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  4. तमाम-उम्र ... ताउम्र

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