वो करती थी मुझसे
अपने सपनों की बातें
मेरे सीने से लिपट कर,
और चौंधियां जाती थी
उसकी बड़ी-बड़ी काली आँखें
ढेर सारी खुशियों से...
उसका चहकना वैसा ही होता,
जैसे पहली बार
किसी चिड़िया का बच्चा
अपने पंख फैला कर
फुदकता हुआ निकल पड़ता हो
नापने सारा आसमान...
उसके सपने भी
कुछ ऐसे ही मदमस्त होते,
हाथ बढ़ा कर आसमान छूने की चाहत
किसे नहीं होती आखिर...
पर उसकी बड़ी-बड़ी काली आँखें,
बयां कर देती
उसके सपनों की बुनियाद को,
उम्मीद को, हौसले को...
फिर अचानक होता था,
उसके सपनों पर प्रतिघात
और बिखर जाते थे
उसके मासूम, प्यारे से सपने
ठीक वैसे ही,
जैसे कि एक नाज़ुक गुलाब को
जब तोड़ा जाता है डाली से
जबरदस्ती, ज़ोर लगा कर,
तो छन से बिखर जाता है वो
कई पत्तियों में...
लेकिन हर बार
वो फिर से करती कोशिश,
समेटती अपने सपने
और बसाती उनको
अपनी बड़ी-बड़ी काली आँखों में...
फिर से हौसला देती
अपने सपनों की बुनियाद को,
एक नयी उमंग से
और उठ खड़ी होती
इन सपनों के दम पे,
अपनी नियति से लड़ने को...
मिताली जी इस खूबसूरत और भावपूर्ण रचना के लिए बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
बहुत ही भावपूर्ण ... आशा का संचार करती हुयी अनुपम रचना है ...
ReplyDeleterachna padh kar makdi ki kahani yaad aa gayi.
ReplyDeletesunder abhivyakti.
क्या बात है...:)
ReplyDeleteआज 10 - 11 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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यही हौसला तो जीने को प्रेरित करता है…………शानदार प्रस्तुतिकरण्।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना ..
ReplyDeleteलेकिन हर बार
ReplyDeleteवो फिर से करती कोशिश,
समेटती अपने सपने
और बसाती उनको
अपनी बड़ी-बड़ी काली आँखों में.....ye panktiyan bahut hi arthapurna lagi hai dhanyavad......
khubsurat sapna\!!
ReplyDeletepyari si rachna....