सुबह-सुबह की पहली किरण
सीधे खिड़की से छन के
मेरे चेहरे पर
रौशनी और गर्मी की
प्यारी सी थपकी देती रही
और मुझे लगा
जैसे तुम्हारे नर्म हाथ
मेरे बालों से खेलते हुए
मेरे गालों तक आ पहुंचे हो…
तुम्हें देखने के ख़याल से,
तुम्हारी छुअन के एहसास से
अनायास ही,
मुस्कुरा उठे थे मेरे लब
और याद आया मुझे
वो एक लम्हा
जब धीरे से मेरे कान में
ये कह कर
"तुम नींद में मुस्कुराती हुयी
बड़ी प्यारी लगती हो",
तुम करते थे
मेरे दिन की शुरुआत...
बिस्तर के किनारे रखी पुरानी मेज
और उस पर सजी
एक प्याली चाय
अब भी करती है इंतज़ार तुम्हारा,
कि उसे भी आदत है
पहले तुम्हारे होठों से लगने की,
फिर तुम्हारे हाथों से
मेरे होठों तक पंहुचने की…
आज भी जब
मैं जी रही हूँ बस
तुम्हारी हसीन यादों के सहारे,
सुबह-सुबह की ये
एक प्याली चाय
बन गयी है मेरी हमराज़,
करती है हर सुबह
तुम्हारी ही तरह
मेरे उठने का इंतज़ार
और करती है मुझे
तुम्हारी ही तरह
"मासूम" सा प्यार...
सीधे खिड़की से छन के
मेरे चेहरे पर
रौशनी और गर्मी की
प्यारी सी थपकी देती रही
और मुझे लगा
जैसे तुम्हारे नर्म हाथ
मेरे बालों से खेलते हुए
मेरे गालों तक आ पहुंचे हो…
तुम्हें देखने के ख़याल से,
तुम्हारी छुअन के एहसास से
अनायास ही,
मुस्कुरा उठे थे मेरे लब
और याद आया मुझे
वो एक लम्हा
जब धीरे से मेरे कान में
ये कह कर
"तुम नींद में मुस्कुराती हुयी
बड़ी प्यारी लगती हो",
तुम करते थे
मेरे दिन की शुरुआत...
बिस्तर के किनारे रखी पुरानी मेज
और उस पर सजी
एक प्याली चाय
अब भी करती है इंतज़ार तुम्हारा,
कि उसे भी आदत है
पहले तुम्हारे होठों से लगने की,
फिर तुम्हारे हाथों से
मेरे होठों तक पंहुचने की…
आज भी जब
मैं जी रही हूँ बस
तुम्हारी हसीन यादों के सहारे,
सुबह-सुबह की ये
एक प्याली चाय
बन गयी है मेरी हमराज़,
करती है हर सुबह
तुम्हारी ही तरह
मेरे उठने का इंतज़ार
और करती है मुझे
तुम्हारी ही तरह
"मासूम" सा प्यार...
खूबसूरत सी कल्पना और अभिव्यक्ति
ReplyDeletebahut hi bhaavpoorna prastuti. padhkar accha laga.
ReplyDelete-Abhijit (Reflections)
fragile... :)
ReplyDeleteबहुत ही भीगे अहसासो को संजोया है …………वाह
ReplyDeleteबहुत प्यारे एहसासों से भरी रचना ।
ReplyDeleteबहुत खूब मिताली जी।
ReplyDeleteसादर