Wednesday, May 1, 2013

एक प्याली चाय...

सुबह-सुबह की पहली किरण
सीधे खिड़की से छन के
मेरे चेहरे पर
रौशनी और गर्मी की
प्यारी सी थपकी देती रही
और मुझे लगा
जैसे तुम्हारे नर्म हाथ
मेरे बालों से खेलते हुए
मेरे गालों तक आ पहुंचे हो…
तुम्हें देखने के ख़याल से,
तुम्हारी छुअन के एहसास से
अनायास ही,
मुस्कुरा उठे थे मेरे लब
और याद आया मुझे
वो एक लम्हा
जब धीरे से मेरे कान में
ये कह कर
"तुम नींद में मुस्कुराती हुयी
बड़ी प्यारी लगती हो",
तुम करते थे
मेरे दिन की शुरुआत...
बिस्तर के किनारे रखी पुरानी मेज
और उस पर सजी
एक प्याली चाय
अब भी करती है इंतज़ार तुम्हारा,
कि उसे भी आदत है
पहले तुम्हारे होठों से लगने की,
फिर तुम्हारे हाथों से
मेरे होठों तक पंहुचने की…
आज भी जब
मैं जी रही हूँ बस
तुम्हारी हसीन यादों के सहारे,
सुबह-सुबह की ये
एक प्याली चाय
बन गयी है मेरी हमराज़,
करती है हर सुबह
तुम्हारी ही तरह
मेरे उठने का इंतज़ार 
और करती है मुझे
तुम्हारी ही तरह
"मासूम" सा प्यार...

6 comments:

  1. खूबसूरत सी कल्पना और अभिव्यक्ति

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  2. bahut hi bhaavpoorna prastuti. padhkar accha laga.

    -Abhijit (Reflections)

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  3. बहुत ही भीगे अहसासो को संजोया है …………वाह

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  4. बहुत प्यारे एहसासों से भरी रचना ।

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  5. बहुत खूब मिताली जी।


    सादर

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