कई दिन से
वो सोया नहीं था...
नसीब में नहीं थी उसके
सर छुपाने को छत,
आराम करने को बिस्तर
और पापी पेट की भूख मिटाने को
दो जून की रोटी...
भूखे पेट ने छीन ली
उसकी नींद, उसका चैन...
करवटें बदलते कटती थी
उसकी सारी रातें...
जागते हुए, भटकते हुए,
एक दिन मिला उसे आशियाना
बिना छत का, दीवारों का
जहाँ बस रात कटती थी,
तारों की चादर
और खुले आसमान के नीचे...
जो दीवार और छत के बने घरों में रहते,
वो उसके आशियाने को
फूटपाथ कहते थे,
पर उसे फ़र्क नहीं पड़ा कभी...
क्योंकि इसी फूटपाथ ने
उसे नींद दी,
चैन की नींद...
कई दिन से जगी उसकी आँखें
फूटपाथ में लेटते ही
बोझिल होने लगती...
आज वो गरीब होके भी
शायद दुनिया में खुद को
औरों से अमीर समझता होगा...
बड़े-बड़े महलों में, घर में
आज प्यार नहीं, अपनापन नहीं,
चैन की नींद नहीं, सुकून नहीं,
भागते-दौड़ते कटती ज़िन्दगी ने
सबसे पहले नींद ही छीनी...
पर,
वो गरीब
तेज़ रफ़्तार से भागती
चमचमाती गाड़ियों के शोर में भी
चैन की नींद
सोता था फूटपाथ में...
वो गरीब था,
पर दिन भर मेहनत मजदूरी कर
रात को मैली फटी चादर ओढ़े
मज़े से सोता था,
क्योंकि उसे नींद आती थी
जो शायद पैसों के पीछे भागते,
ऐशो-आराम तलबगार लोगों को
अब नसीब नहीं होती...
क्योंकि उसे नींद आती थी
ReplyDeleteजो शायद पैसों के पीछे भागते,
ऐशो-आराम तलबगार लोगों को
अब नसीब नहीं होती...
बिलकुल सही बात कही आपने।
कविता आपकी जनवादी सोच को दर्शाती है।
सादर
dil ko chhuti rachna...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावमयी प्रस्तुति.... इस कविता का तो जवाब नहीं !
ReplyDeleteहकीकत बयाँ कर दी।
ReplyDeletesach ko batlaati rachna....
ReplyDeletebehtareen kavita,,,
ReplyDeletegareeb ki kahani kahti asardar rachna.
ReplyDeletebade hi sadharan shabdon mein bayaan kar di sari baatein, kafi badhiya likhti hain aap Mitali ji,,, aapke kalam ko humari dua lage aur aap yun hi muskuarte hue likhti rahein GOD BLESS YOU!
ReplyDeleteसुन्दर रचना, खूबसूरत अंदाज़
ReplyDeleteसही दिशा में सोचने को इन्गिंत करती रचना आपके हृदय को भी बताती रचना बधाई
ReplyDeleteखूबसूरत और संवेदनशील रचना. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
एक दिल छू लेने वाले हालात को,कोमल भावनाओं के शब्दों में बाँधकर जिस ढंग से आपने कहा है....वो काबिले तारीफ है...
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर भी आयें...
www.kumarkashish.blogspot.com
बहुत संवेदनशील रचना
ReplyDeleteबहुत ही भावमय करते शब्दों के साथ सटीक लेखन ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावमयी प्रस्तुति.
ReplyDeleteसही कहा ......अमीरों को नींद के लिए गोली लेनी पड़ती है
ReplyDeleteक्योंकि उसे नींद आती थी
ReplyDeleteजो शायद पैसों के पीछे भागते,
ऐशो-आराम तलबगार लोगों को
अब नसीब नहीं होती...बहुत सुन्दर भावमयी प्रस्तुति.
man ko gehrai tuk choo gai rachna.......
ReplyDeletebhut sundar rachna:)
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