Monday, August 8, 2011

काश...

उड़ते पंछी को देख कर सोचा था मैंने,
काश, ये पंख कोई ला दे मुझे...

बरसों धंसी रही हूँ ज़मीन पर मैं,
काश, ज़रा ऊपर कोई उठा दे मुझे...

संजोये हुए ख़्वाब जो पूरे ना हो सके,
काश, उन्हें करके पूरा कोई हंसा दे मुझे...

बहती हवा सा बहना चाहा था मैंने,
काश, मेरी डोर हटा के कोई उड़ा दे मुझे...

मैं इक नए ज़माने में कदम बढ़ा लूं ज़रा,
काश, वहां से करके इशारा कोई बुला दे मुझे...

समुन्दर में उठती लहरें थमती नहीं किसी के लिए,
काश, उफनती लहरों में चलना कोई सिखा दे मुझे...

अंधेरों से भरी दीवारें मेरे मन के भीतर की,
काश, जला के लौ दीये की कोई उजाला दे मुझे...

मन में उठते तूफानों से पलकों को आराम नहीं,
काश, कि गा कर मीठी लोरी कोई सुला दे मुझे...

10 comments:

  1. संजोये हुए ख़्वाब जो पूरे ना हो सके,
    काश, उन्हें करके पूरा कोई हंसा दे मुझे...

    VERY NICE.......

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  2. बहुत ही खूबसूरत !


    सादर

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  3. duro ki ummeed kyu ???? apne haunsle buland karo aur khud hi udna seekho...kuchh b mushil nahi .

    bahut sunder abhivyakti.

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  4. मैं इक नए ज़माने में कदम बढ़ा लूं ज़रा,
    काश, वहां से करके इशारा कोई बुला दे मुझे...

    सुन्दर लेखन शुभकामनायें

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  5. कितनी ख्वाहिशें रहती हैं दिल की..
    काश सब पूरी हो जाती ख्वाहिशें..

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  6. समुन्दर में उठती लहरें थमती नहीं किसी के लिए,
    काश, उफनती लहरों में चलना कोई सिखा दे मुझे...

    bhut sundar panktiya...laazwaab:)

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  7. पंख में ताकत नहीं होती उड़ने की .. ताकत खुद में लानी होती है ... खूबसूरत रचना .. हौसला ही सारे काश का समाधान है ..

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  8. समुन्दर में उठती लहरें थमती नहीं किसी के लिए,
    काश, उफनती लहरों में चलना कोई सिखा दे मुझे...

    बहुत सुंदर,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  9. बहुत सुन्दर रचना , खूबसूरत प्रस्तुति

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