दूर तक जाते हुए
अकेले विरान रास्तों में,
मेरे साथ-साथ कुछ
अलग से, अनजाने से साये
चलते हुए महसूस होते हैं हमेशा...
गौर से देखने पर,
यूँ लगता है कि जैसे
काफी जाने-पहचाने हैँ वो...
शायद,
मेरे अतीत के साये हैं वो...
रात में जब कमरे की
बत्ती बंद हो जाती है
और फैल जाता है
एक सुनसान अँधेरा चारों तरफ,
तब भी मेरे सिरहाने पर बैठकर
और प्यार से मेरी आँखों मेँ
मचल कर,
अपना वजूद याद दिलाते हैँ वो...
क्योंकि,
मेरे अतीत के साये हैं वो...
किसी बगिया मेँ
फिरते हुए भँवरे की तरह,
मेरी यादेँ और ख़्वाहिशें भी
भटकती रहती हैं,
किसी बहार के इंतज़ार में...
फिर किसी दिन,
जब मन में होती है
खुशियों की आहट,
तो सब झूमते हैं इतना
कि वर्तमान में आ जाते हैँ
मेरे अतीत के साये...
बहुत बढ़िया लिखा है आपने.अतीत के ये साये कभी हंसाते हैं तो कभी रुलाते भी हैं.बहुत ही अजीब होते हैं न .
ReplyDelete________
इस बसंत के मौसम में क्यों ...
बहुत ही सुंदर...आपकी रचनाएँ सत्य के दर्शन कराती है गुढ़ रहस्यों के संग...लिखते रहिएँ।शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (12.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
ReplyDeleteचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
सुन्दर और भावपूर्ण कविता । बधाई।
ReplyDeleteएक-एक शब्द भावपूर्ण ..... बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteखूबसूरत और भावमयी प्रस्तुति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
हृदयस्पर्शी रचना। लिखते रहें।
ReplyDeleteकभी तो होठों में हसीं ले आते हैं
ReplyDeleteऔर कभे बहुत सताते हैं...
ये अतीत के साए...
बहुत खूब....
प्रिय मिताली पुनेठा जी
ReplyDeleteसस्नेहाभिवादन !
किसी दिन,
जब
मन में होती है खुशियों की आहट…
तो सब झूमते हैं इतना
कि वर्तमान में आ जाते हैं
मेरे अतीत के साये…
बहुत सुंदर सरस भावमयी रचना के लिए बधाई !
… लेकिन अब बहुत समय हो गया , नई रचना का इंतज़ार रहेगा ।
…संभव हो तो नई रचना की मेल द्वारा सूचना भेजें …
♥ हार्दिक शुभकामनाएं ! मंगलकामनाएं !♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
आप को सपरिवार होली की हार्दिक शुभ कामनाएं.
ReplyDeleteसादर