बेख़बर थे तुम कुछ ऐसे
मेरी नज़रों के सामने
गहरी नींद में सोये हुए,
कि तुम्हें आज तक भी
चल ना पाया
इस बात का पता
कि अपनी पसंद की
रेशमी सफ़ेद चादर में,
कई सिलवटों के साथ
तुम्हें मासूमियत से सोता देख
उड़ जाती है कहीं दूर
मेरी आँखों से नींद...
ना जाने कितनी रातें
बीत गयी हैं यूँ ही
तुम्हें एकटक देखते-देखते
और उस मीठे से सपने को
अपने मन में सोचते-सोचते,
जो तुम्हारी नींद की गहराई से भी
तुम्हारे चेहरे पर ल देता है
कई रंगों की मुस्कान...
हर रात सजाती हूँ मैं
अनगिनत अरमानों के सपने,
सिलती हूँ उन्हें फिर
विश्वास के धागे से
और बड़ी मेहनत से
बना कर एक प्यारी सी चादर,
ओढ़ा देती हूँ तुम्हें,
ताकि तुम्हारी उस
रेशमी सफ़ेद चादर की सिलवटें
कर ना सकें मुकाबला
मेरे अरमानों की चादर से...
मेरी नज़रों के सामने
गहरी नींद में सोये हुए,
कि तुम्हें आज तक भी
चल ना पाया
इस बात का पता
कि अपनी पसंद की
रेशमी सफ़ेद चादर में,
कई सिलवटों के साथ
तुम्हें मासूमियत से सोता देख
उड़ जाती है कहीं दूर
मेरी आँखों से नींद...
ना जाने कितनी रातें
बीत गयी हैं यूँ ही
तुम्हें एकटक देखते-देखते
और उस मीठे से सपने को
अपने मन में सोचते-सोचते,
जो तुम्हारी नींद की गहराई से भी
तुम्हारे चेहरे पर ल देता है
कई रंगों की मुस्कान...
हर रात सजाती हूँ मैं
अनगिनत अरमानों के सपने,
सिलती हूँ उन्हें फिर
विश्वास के धागे से
और बड़ी मेहनत से
बना कर एक प्यारी सी चादर,
ओढ़ा देती हूँ तुम्हें,
ताकि तुम्हारी उस
रेशमी सफ़ेद चादर की सिलवटें
कर ना सकें मुकाबला
मेरे अरमानों की चादर से...
कितनी आशा और विश्वास से बुनी अरमानों की चादर ..... मर्मस्पर्शी भाव
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (27 -4-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
bahut hi pyari si apni si lagti Rachna
ReplyDeleteअरमानों की चादर का विस्तार कम न हो....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!!!
अनु
प्यारी रचना....
ReplyDeleteलाजवाब!
ReplyDeleteबहुत खूब
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