महफ़िल सजी हुयी थी,
हंसी ठहाकों का माहौल था।
हर कोई अपनी तारीफों के पुल बांध रहा था।
कभी किसी बात पर चर्चा हो रही थी,
तो कभी गुफ्तगू और कभी बहस।
हर कोई मशगूल था,
एक-दूसरे के सवालों-जवाबों में।
सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था।
इतने में शर्मा जी बोल उठे-
"यार, आजकल कंगाली छायी है, हाथ बहुत तंग है।"
अरे ये क्या?
सबका ध्यान अपनी बातों से हटके
शर्मा जी पर आ टिका।
"ऐसा क्या हो गया शर्मा जी??"
"आप का बेटा तो विदेश में है ना !!"
"अरे, पिछले हफ्ते ही तो आपने नयी कार ली है ना..."
और ना जाने कितने ही सवाल
मिसाइल की तरह शर्मा जी की तरफ रुख कर गए।
शर्मा जी का मुंह खुला,
जवाब-देही के लिए...
"अम़ा, काहे की नयी गाड़ी,
और मैं तो पछता रहा हूँ लड़के को विदेश भेज कर..."
सबने पूछा-"भला ऐसा क्यूँ शर्मा जी???"
"यहाँ होता तो कुछ काम-धंधा करता,
दो पैसे कमाता और मेरा हाथ बंटाता।
वहां बैठ के मुफ्त की रोटी तोड़ रहा है,
और यहाँ मेरा बैंक-बैलेंस ख़तम हो रहा है।
लाखों लग गए फीस में, रहने-खाने में,
अभी नयी कार में।
दो साल में रिटायर हो जाऊंगा,
तब पैसा कहाँ से लाऊंगा।"
माहौल में सन्नाटा छाता जा रहा था।
सबको शर्मा जी की गरीबी पर
बड़ा अफ़सोस हो रहा था।
दो गाड़ियाँ, एक बड़ा मकान,
इकलौता लड़का, वो भी विदेश में;
इन सबके बावजूद
सबको शर्मा जी गरीब लगे।
वाह शर्मा जी! वाह!!
आपकी गरीबी ने तो गजब कर दिया।
फुटपाथ में रहने वाले गरीबों को,
भूखे, अधनंगे, भिखमंगों को,
गरीबी रेखा से नीचे वालों को,
विलुप्त प्राणी घोषित कर दिया...
और आपके जैसे ना जाने कितनों को,
गरीब घोषित कर दिया...
सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया। इन पंक्तियों में लघु कथा भी झलकती है। ये शैली मेरी पसंदीदा है। एक तरफ आपने व्यंग्य किया है और साथ ही पिछड़े वर्ग की पीड़ा भी दिखाई है।
ReplyDeleteइसी शैली में मैंने कुछ लिखा था। एक बार देखें :)
http://pyala.blogspot.com/2009/03/blog-post_07.html
aap sabhi ka bahut-bahut shukriya...aapse ek anurodh hai ki jahaan par galti lage, wahaan par apne sujhaaw bhi avashya dein...taarif ke sath-sath aalochnayein bhi swikarya hain...
ReplyDeletemazedar rachna ek umda khusboo ke saath
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