
हवाओं की सरसराहट बढ़ने लगी थी,
पंछियों की चिल्लाहट भी बढ़ने लगी थी।लगता था कि जैसे कोई तूफ़ान आएगा,
बढ़ी ज़ोरों से साथ में ज़लजला लायेगा।
कैसे संभलेगा मेरा आशियाना इस तूफ़ान में?
क्या सब-कुछ बह जायेगा बारिश के उफ़ान में?
यही सब ख्याल दिल को डरा रहे थे,
मेरी हिम्मत का मुझको एहसास करा रहे थे।
अचानक से बिजली ज़ोरों से चमकी,
दूर आसमान में कहीं रोशनी दमकी।
तेज़ हवाओं के साथ पानी बरसने लगा,
अनजाने डर से मेरा दिल तड़पने लगा।
शायद तूफ़ान आ गया था...
बिन बुलाया मेहमान आ गया था...
कुछ देर तबाही मचाने के बाद,
मेरे आंसू बहाने के बाद,
सब-कुछ शांत हो चुका था,क्योंकि तूफ़ान जा चुका था।
ये तूफ़ान तो सह लिया था,
तबाह होने से बचा लिया था,
पर उस तूफ़ान का क्या जो अब आने वाला था,बाहर के बदले इस दिल पर बरसने वाला था।
आशियाना तो बचा लिया था इस बाहर के तूफ़ान से,
क्या खुद को बचा पाऊँगी अपने ही दिल के तूफ़ान से?
ये सवाल भले ही मुझको डरा रहा था,
पर सब ठीक हो जायेगा, ये विश्वास दिला रहा था...