अजनबी होना
दूसरों के लिए,
शायद
बचा लेता है हमें
गुनाहगार साबित होने से,
लेकिन
होना अजनबी खुद ही से
खड़ा कर देता है
कई सारे ऐसे सवाल,
जिनके जवाब चाहके भी
कभी नहीं मिल पाते...
आख़िर,
हम उस वजूद से
पूछ नहीं पाते कभी
कि बता तेरी रज़ा क्या है
क्यों तू हमारा होकर भी
हम ही से रह जाता है अजनबी...
अक्सर,
धोखा दे देता है हमें
शीशे का एक टुकड़ा भी
क्योंकि छिपा देता है वो
हमारे मन की सच्चाई को
चेहरे के परदे से…
किसी अजनबी से लड़ना
इस ज़माने में
कोई बड़ी बात नहीं,
बड़ी बात तो है
खुद ही से लड़ते रहना
तमाम-उम्र,
खुद की ही पहचान के लिये…
दूसरों के लिए,
शायद
बचा लेता है हमें
गुनाहगार साबित होने से,
लेकिन
होना अजनबी खुद ही से
खड़ा कर देता है
कई सारे ऐसे सवाल,
जिनके जवाब चाहके भी
कभी नहीं मिल पाते...
आख़िर,
हम उस वजूद से
पूछ नहीं पाते कभी
कि बता तेरी रज़ा क्या है
क्यों तू हमारा होकर भी
हम ही से रह जाता है अजनबी...
अक्सर,
धोखा दे देता है हमें
शीशे का एक टुकड़ा भी
क्योंकि छिपा देता है वो
हमारे मन की सच्चाई को
चेहरे के परदे से…
किसी अजनबी से लड़ना
इस ज़माने में
कोई बड़ी बात नहीं,
बड़ी बात तो है
खुद ही से लड़ते रहना
तमाम-उम्र,
खुद की ही पहचान के लिये…
किसी अजनबी से लड़ना
ReplyDeleteइस ज़माने में
कोई बड़ी बात नहीं,
बड़ी बात तो है
खुद ही से लड़ते रहना
तमाम-उम्र,
खुद की ही पहचान के लिये…
बिलकुल सच्ची बात कही आपने।
सादर
आपने लिखा....
ReplyDeleteहमने पढ़ा....
और लोग भी पढ़ें;
इसलिए शनिवार 04/05/2013 को
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
पर लिंक की जाएगी.
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है .
धन्यवाद!
aap sabhi ka aabhaar... protsaahan ke liye hardik dhanyawaad...
ReplyDeleteअव्वल तो स्वयं का परिचय पाना ही मुश्किल .....बहुत खूब ।
ReplyDeleteआपकी यह अप्रतिम् प्रस्तुति ''निर्झर टाइम्स'' पर लिंक की गई है।
ReplyDeletehttp//:nirjhat-times.blogspot.com पर आपका स्वागत है।कृपया अवलोकन करें और सुझाव दें।
सादर
protsaahan ke liye abhinandan..
Deleteक्या बात है ,वाह !
ReplyDeleteshukriya....
Deleteजीवन का सबसे कठिन काम खुद को पहचानना
ReplyDeleteअनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
lateast post मैं कौन हूँ ?
latest post परम्परा
aabhaar.......
Deleteवाह ... बहुत ही बढिया
ReplyDeleteshukriya
Deleteमुखौटे लगाकर दूसरों को छल सकते हैं खुद को नहीं ,बहुत शानदार अभिव्यक्ति हेतु बधाई
ReplyDeletesahi kaha aapne...apni asliyat se koi anjaan nahi hota...
Deleteprashansa ke liye dhanyawaad....
अक्सर,
ReplyDeleteधोखा दे देता है हमें
शीशे का एक टुकड़ा भी
क्योंकि छिपा देता है वो
हमारे मन की सच्चाई को-------
जीवन का गहरा अहसास
बहुत सुंदर रचना
बधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग का भी अनुसरण करे
http://jyoti-khare.blogspot.in
बेहतरीन जीवन-दर्शन, कवि श्री नीरज जी की पंक्तियाँ याद आ गईं
ReplyDeleteज़िंदगी भर तो हुई, गुफ्तगू गैरों से मगर
आज तलक अपनी, खुद से न मुलाकात हुई
श्रेष्ठ भावों के लिए बधाई...
अजनबी हो जाना, बने रहना दोनों ही मुश्किल हैं। अजनबीपन हमारे मन से शुरू होकर मन पर ही समाप्त होता है ---।
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