Thursday, May 2, 2013

अजनबी...

अजनबी होना
दूसरों के लिए, 
शायद
बचा लेता है हमें
गुनाहगार साबित होने से,
लेकिन
होना अजनबी खुद ही से
खड़ा कर देता है
कई सारे ऐसे सवाल,
जिनके जवाब चाहके भी
कभी नहीं मिल पाते...
आख़िर,
हम उस वजूद से
पूछ नहीं पाते कभी
कि बता तेरी रज़ा क्या है
क्यों तू हमारा होकर भी
हम ही से रह जाता है अजनबी...

अक्सर,
धोखा दे देता है हमें
शीशे का एक टुकड़ा भी
क्योंकि छिपा देता है वो
हमारे मन की सच्चाई को
चेहरे के परदे से…
किसी अजनबी से लड़ना
इस ज़माने में
कोई बड़ी बात नहीं,
बड़ी बात तो है
खुद ही से लड़ते रहना
तमाम-उम्र,
खुद की ही पहचान के लिये…

17 comments:

  1. किसी अजनबी से लड़ना
    इस ज़माने में
    कोई बड़ी बात नहीं,
    बड़ी बात तो है
    खुद ही से लड़ते रहना
    तमाम-उम्र,
    खुद की ही पहचान के लिये…

    बिलकुल सच्ची बात कही आपने।

    सादर

    ReplyDelete
  2. आपने लिखा....
    हमने पढ़ा....
    और लोग भी पढ़ें;
    इसलिए शनिवार 04/05/2013 को
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
    पर लिंक की जाएगी.
    आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    लिंक में आपका स्वागत है .
    धन्यवाद!

    ReplyDelete
  3. aap sabhi ka aabhaar... protsaahan ke liye hardik dhanyawaad...

    ReplyDelete
  4. अव्वल तो स्वयं का परिचय पाना ही मुश्किल .....बहुत खूब ।

    ReplyDelete
  5. आपकी यह अप्रतिम् प्रस्तुति ''निर्झर टाइम्स'' पर लिंक की गई है।
    http//:nirjhat-times.blogspot.com पर आपका स्वागत है।कृपया अवलोकन करें और सुझाव दें।
    सादर

    ReplyDelete
  6. जीवन का सबसे कठिन काम खुद को पहचानना
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    lateast post मैं कौन हूँ ?
    latest post परम्परा

    ReplyDelete
  7. वाह ... बहुत ही बढिया

    ReplyDelete
  8. मुखौटे लगाकर दूसरों को छल सकते हैं खुद को नहीं ,बहुत शानदार अभिव्यक्ति हेतु बधाई

    ReplyDelete
    Replies
    1. sahi kaha aapne...apni asliyat se koi anjaan nahi hota...
      prashansa ke liye dhanyawaad....

      Delete
  9. अक्सर,
    धोखा दे देता है हमें
    शीशे का एक टुकड़ा भी
    क्योंकि छिपा देता है वो
    हमारे मन की सच्चाई को-------
    जीवन का गहरा अहसास
    बहुत सुंदर रचना
    बधाई



    आग्रह है मेरे ब्लॉग का भी अनुसरण करे
    http://jyoti-khare.blogspot.in

    ReplyDelete
  10. बेहतरीन जीवन-दर्शन, कवि श्री नीरज जी की पंक्तियाँ याद आ गईं
    ज़िंदगी भर तो हुई, गुफ्तगू गैरों से मगर
    आज तलक अपनी, खुद से न मुलाकात हुई

    श्रेष्ठ भावों के लिए बधाई...

    ReplyDelete
  11. अजनबी हो जाना, बने रहना दोनों ही मुश्किल हैं। अजनबीपन हमारे मन से शुरू होकर मन पर ही समाप्त होता है ---।

    ReplyDelete