दूर तक जाते हुए
अकेले विरान रास्तों में,
मेरे साथ-साथ कुछ
अलग से, अनजाने से साये
चलते हुए महसूस होते हैं हमेशा...
गौर से देखने पर,
यूँ लगता है कि जैसे
काफी जाने-पहचाने हैँ वो...
शायद,
मेरे अतीत के साये हैं वो...
रात में जब कमरे की
बत्ती बंद हो जाती है
और फैल जाता है
एक सुनसान अँधेरा चारों तरफ,
तब भी मेरे सिरहाने पर बैठकर
और प्यार से मेरी आँखों मेँ
मचल कर,
अपना वजूद याद दिलाते हैँ वो...
क्योंकि,
मेरे अतीत के साये हैं वो...
किसी बगिया मेँ
फिरते हुए भँवरे की तरह,
मेरी यादेँ और ख़्वाहिशें भी
भटकती रहती हैं,
किसी बहार के इंतज़ार में...
फिर किसी दिन,
जब मन में होती है
खुशियों की आहट,
तो सब झूमते हैं इतना
कि वर्तमान में आ जाते हैँ
मेरे अतीत के साये...