Friday, August 3, 2012

दर्द...

कुछ शब्द,
जिनका अर्थ शायद कोई
समझ ना सके,
अपने मायने खो देता है...


कुछ ज़ख्म,
जिनका दर्द शायद कोई
महसूस ना कर सके,
अपने एहसास खो देता है...


कुछ शब्द समझा नहीं पाते
दर्द के एहसास को,
और कुछ दर्द ऐसे भी हैं
जो शब्दों में बयान नहीं हो पाते...


क्यूँ जुबां तक आते-आते
दर्द आँखों से बह जाता है,
और क्यूँ ज़ख्मों को वक़्त पर
शब्द नहीं मिल पाता है...


क्यूँ उम्मीदों को हमेशा
ठोकरें मिला करती हैं,
और क्यूँ सपनों को हमेशा
हकीकत छला करती हैं...


आस-पास कोई अपना नहीं,
आँखों में कोई सपना नहीं,
गुज़रती ज़िन्दगी में कल नहीं,
हँसते-मुस्कुराते दो पल नहीं...


बस ये दर्द ही साथ रहता है,
जिंदा होने का एहसास रहता है...

8 comments:

  1. Nice n very sensitive poem...keep writing.

    ReplyDelete
  2. कुछ ज़ख्म,
    जिनका दर्द शायद कोई
    महसूस ना कर सके,

    उत्कृष्ट प्रस्तुति

    ReplyDelete
  3. दर्द की बेहतरीन परिभाषा...
    मर्मस्पर्शी रचना

    ReplyDelete
  4. कुछ शब्द,
    जिनका अर्थ शायद कोई
    समझ ना सके,
    अपने मायने खो देता है...मन के भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....

    ReplyDelete
  5. बहुत सुंदर प्रस्तुति ..... मर्मस्पर्शी

    ReplyDelete
  6. दर्द महसूस किए जा सकते है...

    ReplyDelete
  7. बहुत खूब सार्धक लाजबाब अभिव्यक्ति।
    महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ ! सादर
    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    अर्ज सुनिये
    कृपया मेरे ब्लॉग का भी अनुसरण करे

    ReplyDelete
  8. उत्कृष्ट प्रस्तुति

    ReplyDelete