Thursday, April 25, 2013

मेरे अरमानों की चादर

बेख़बर थे तुम कुछ ऐसे
मेरी नज़रों के सामने
गहरी नींद में सोये हुए,
कि तुम्हें आज तक भी 
चल ना पाया 
इस बात का पता 
कि अपनी पसंद की 
रेशमी सफ़ेद चादर में,
कई सिलवटों के साथ 
तुम्हें मासूमियत से सोता देख 
उड़ जाती है कहीं दूर 
मेरी आँखों से नींद...

ना जाने कितनी रातें 
बीत गयी हैं यूँ ही 
तुम्हें एकटक देखते-देखते 
और उस मीठे से सपने को 
अपने मन में सोचते-सोचते,
जो तुम्हारी नींद की गहराई से भी 
तुम्हारे चेहरे पर ल देता है 
कई रंगों की मुस्कान...

हर रात सजाती हूँ मैं 
अनगिनत अरमानों के सपने,
सिलती हूँ उन्हें फिर 
विश्वास के धागे से 
और बड़ी मेहनत से 
बना कर एक प्यारी सी चादर,
ओढ़ा देती हूँ तुम्हें, 
ताकि तुम्हारी उस 
रेशमी सफ़ेद चादर की सिलवटें 
कर ना सकें मुकाबला 
मेरे अरमानों की चादर से...

Sunday, April 21, 2013

दरिया...

एक दरिया था 
महकते जज़्बातों  का,
जो तब-तब उमड़ता था 
जब-जब तेरा ज़िक्र 
मेरे कानों से गुज़रता हुआ 
सीधे जा पंहुचता था 
मेरे दिल की गहराई में ...

इस जज़्बाती दरिया ने 
कभी तुझे निराश किया हो 
ये मुमकिन नहीं,
आखिर तेरे लिए ही
इस दरिया का महकना 
बन गया था 
इस दरिया की नियति ...

आज तू नहीं,
तुझसे जुड़ी कोई याद नहीं,
कोई महकते जज़्बात नहीं 
और ना ही है 
वो उमड़ता हुआ सैलाब 
इस दरिया में ...

सूख चूका है 
ये जज़्बाती दरिया 
तेरी प्यास बुझाते बुझाते,
रह गए हैं बस
पत्थर और मटमैली धूल   
कि तू अब लौट के आने की 
ज़हमत मत उठाना ...

तुझे अपनाने के लिए 
बहाना होगा मुझे 
नये जज्बातों को 
जो मुमकिन नहीं मेरे लिए, 
क्योंकि अब फिर से 
उस सैलाब को बहाने के लिए 
खोदना होगा तुझे 
मेरे दिल की ज़मीन को 
जो मुमकिन नहीं तेरे लिए ...