Saturday, May 26, 2012

संपूर्ण प्रेम और मनुष्य

मनुष्य,
जो पैदा हुआ है
अपने जीवन के कुछ महत्वपूर्ण,
कुछ अर्थपूर्ण उद्देश्य को
प्राप्त करने के लिए,
मुश्किल से समझ पाता है
अपने जीवन के
उन्हीं उद्देश्यों को...

कई तरह के उद्देश्यों में से,
शायद,
संपूर्ण प्रेम के अर्थ को समझना ही
मनुष्य का सबसे अहम्,
सबसे जीवंत उद्देश्य हो...

प्रेम का अस्तित्व
कहीं और नहीं मिलता,
संपूर्ण सृष्टि की,
संपूर्ण शक्ति से,
अपनी मानसिक चेतना को
जागृत करने पर
स्वतः ही ये ज्ञात हो जाता है
कि संपूर्ण प्रेम का आधार
स्वयं मनुष्य के भीतर ही है...

इस सृष्टि का
बेहतर और बदतर होना,
मनुष्य के स्वयं के
बेहतर और बदतर होने से जुड़ा है...

संपूर्ण प्रेम की ताकत  ही
मनुष्य को बेहतर बना सकती है,
क्योंकि मनुष्य की चेतना
संपूर्ण प्रेम से जागृत हो कर,
मनुष्य को हमेशा
बेहतर से बेहतर बनाने की ही
चेष्टा करती है...

और अंततः
वो एक क्षण आ जाता है
जब मनुष्य को
ये ज्ञात हो जाता है
कि उसके जीवन का
अब तक का अनजाना उद्देश्य
क्या है,
संपूर्ण प्रेम का अर्थ
क्या है,
और उसका मनुष्य होना
क्या है...

Monday, May 7, 2012

काश तुम साथ चलते...

कठिन था बहुत मेरी मंज़िल का सफ़र,
बड़ी उम्मीद थी तुमसे, काश तुम साथ चलते...

ख़बर थी मुझे कि तमाम-उम्र कोई साथ नहीं देता,
दो चार कदम  ही सही, काश तुम साथ चलते...

तुम्हारे आने की आहट ने जगाया मुझे ख़्वाबों से,
हक़ीकत ना सही ख़्वाबों में ही सही, काश तुम साथ चलते...

खिली धूप, महकती राह में हमें साथ चलना था,
वीराने भी बहार बन जाते, काश तुम साथ चलते...

इक मेरे दिल को ही नहीं थी आरज़ू तेरी जुस्तजू तेरी,
मैंने ज़िन्दगी तुझपे वारी थी, काश तुम साथ चलते...

समझा के मुझे बेफ़िक्री से तुम अपनी राह निकल गए,
साथ होते तो ये मंज़र बदलता, काश तुम साथ चलते...

खुद ही फ़ैसला कर के मुझे तनहा छोड़ दिया तुमने,
खाके मेरी तन्हाई पे तरस, काश तुम साथ चलते...

माना की रिश्तों में बड़ा दर्द था, बड़ी तकलीफ़ थी,
मेरी मुहब्बत को याद करके ही सही, काश तुम साथ चलते...