Saturday, May 22, 2010

लौटता सूरज

शाम के सिंदूरी आँचल में,
दूर तक फैली सूरज की लालिमा
इशारे कर रही है...

चह-चहाते पक्षी लौट चले हैं
अपने-अपने नीड़ों की तरफ...

अपनों से मिलने की ख़ुशी ने
उनके पंखों में हिम्मत भर दी
और उड़ान में तेजी दे दी...

हर कोई लौट रहा है वहां को,
जहाँ से सुबह चला था,
जैसे सूरज लौट रहा है...
सुबह से दिन, दिन से शाम,
और फिर शाम से रात...

सूरज लौट जायेगा
और छोड़ जायेगा
काली अँधेरी रात...
इस वादे के साथ
कि नयी सुबह के साथ,
दिन फिर निकलेगा
नयी शुरुआत के साथ...

7 comments:

  1. मिताली जी, एक अच्छी कविता के लिए आपको बधाई !

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  2. अपनों से मिलने की ख़ुशी ने
    उनके पंखों में हिम्मत भर दी
    और उड़ान में तेजी दे दी...
    ..
    इस वादे के साथ
    कि नयी सुबह के साथ,
    दिन फिर निकलेगा
    नयी शुरुआत के साथ...
    बिना किसी लाग लपेट के मन के भावों को शब्द देने का सुंदर और सार्थक प्रयास जिसमें सन्देश भी निहित है - शुभकामनाएं

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  3. बहुत अच्छी कविता...

    चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है। हिंदी ब्लागिंग को आप और ऊंचाई तक पहुंचाएं, यही कामना है। इच्छा हो तो यहां पधार सकते हैं -
    http://gharkibaaten.blogspot.com

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  4. aap sabhi ka bahut-bahut shukriya, jo aapne meri lekhani ko itni sarahana di...kabhi koi kamiyan lage to sujhaav bhi jaroor dijiyega...

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  5. मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !

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  6. aap sabhi ka bahut-bahut shukriya...aapse ek anurodh hai ki jahaan par galti lage, wahaan par apne sujhaaw bhi avashya dein...taarif ke sath-sath aalochnayein bhi swikarya hain...

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  7. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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